Monday, February 29, 2016

'दौड़-ए-ज़िन्दगी..'


...

"वक़्त की आँधी थी..
औ' मैं अकेला..
चलने को मजबूर..
कदमों का रेला..

उठा दिल..
सहलायी रूह..
समेट अपने..
एहसासों का ठेला..

मुमकिन कहाँ..
मसरूफ़ियत यहाँ..
फ़ैला हर दश्त..
अरमानों का मेला..

बिछड़ गए..
यार मेरे..
दौड़-ए-ज़िन्दगी..
पेंच ख़ूब खेला..!!"

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'वीकैंड-ख़ुमार..'


...

"मेरे जानेमन..
तेरी हर अदा पे प्यार आता है..
ख़ता पे अपनी ख़ुमार आता है..

साथ को तड़पता हर पल..देखिये..
उनका जवाब एक बार आता है..

मसरूफ़ जानेमन..सुबहो-शाम..
आपको भी हमारा ख्याल आता है..

चलो न..ख़त्म करें ये फ़ासले..
वीकैंड-ख़ुमार बेशुमार आता है..

कस गिरफ़्त..लिपट जायें..
पैग़ाम रूह से ये ही आता है..!!"

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'दोस्ती बचपन वाली..'




...

"कभी-कभी बहुत याद आते हो..
दिल के गहरे तार छेड़ जाते हो..

सुनो, मिला करो न आते-जाते..
दिल को इक तुम ही भाते हो..

महके ता-उम्र..दोस्ती बचपन वाली..
दस्तक साँसों पे..लगा जाते हो..!!"

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--सलाम..इस दोस्ती को..