Thursday, February 23, 2012

'शर्मिन्दा हूँ..'


...


"हर नफ्ज़ गाता रहा..
तराना-ए-गम अपना..
कैसे भूल गया..
ए-माज़ी..
राजदां अपना..


बिखर रहा वजूद..
क्या मिल सकेगा..
फ़क़त..

इक फ़रमान..
रहूँ तनहा..
ता-उम्र..!!"


...

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Prakash Jain said...

Bahut khub

http://www.poeticprakash.com/

संजय भास्‍कर said...

सशक्त उम्दा रचना....
शब्दों की कारीगरी कोई आप से सीखे

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद प्रकाश जैन जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!