Monday, December 31, 2012

'आज़ाद..'





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"कर दिया आज़ाद..अपनी जालिम रिवायत से..
रहना खुश..कद्रदानों की इबादत से..

सफ़र करती हूँ..भूला देना साया भी मेरा..!!"

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'उठ नादां..'




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"पहचां मुश्किल..
मुलाकात मुश्किल..
वहशत अपनी..
दुनिया ग़ैर..
भूला सबको..
पा ख़ुदको..
उठ नादां..
भर ताकत..
तुझसे बेहतर..
कोई नहीं..!!"

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Sunday, December 30, 2012

'जवाब..'






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"क्यूँ ढूँढें जवाब दुनिया में..
छिपा हो ख़ुदा जब ख़ुद में..!!"


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'दश्त..'





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"नुमाईश करते नहीं फ़न की..ए-वाईज़..
सुना है..बिकता वज़ूद हर दश्त यहाँ..!!"


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Saturday, December 29, 2012

'हिसाब..'




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"काश..
बाँट सकती वजूद..

मिटी हूँ इस कदर..
जिस्म माँगे हिसाब..
हर नफ्ज़..!!"

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Tuesday, December 25, 2012

'आफ़ताब..'





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"आयेगा ज़मीन पे चाँद..
खिलेगा आफ़ताब सारी रात..

आँगन खिला है..टेसुओं से..!!"

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'कील-ए-वज़ूद..'




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"जा..
लौट जा..
साहिब मेरे..

कमजोर इतना नहीं..
रूह बेच दूँ..

बेगैरत इतना नहीं..
ज़मीर टांग दूँ..
कील-ए-वज़ूद पे तेरी..!!!"


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Monday, December 24, 2012

'वक़्त..'




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"बेबस नहीं..
बुज़दिल हूँ..

कहता नहीं..
सहता हूँ..

हर नफ्ज़..
मरता हूँ..

उठो..
चलो..

वक़्त बदलेगा..
खौफ़ मिटेगा..
इबादत तेरी..
हिम्मत तेरी..
रंग लाएगी..!!!"

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Sunday, December 23, 2012

'आला-दर्जे के बुतखाने..'





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"छोड़ देते हैं लूट..रूह की रूमानियत..
बिखेर देते हैं दहशत के अंगारे..
जला देते हैं आबरू की आंच..
दफ़ना देते हैं वजूद के रेशे..

चूस लेते हैं..इज्ज़त की रोटी..
निगल लेते हैं..इबादत की चादर..
पीस लेते हैं..सुकूं का गेँहू..
खा लेते हैं..बेखौफ़ी के पकौड़े..

कुछ इज्ज़तदार जवाबदार ठेकेदार..
तम्बू लगाये बैठें हैं..आला-दर्जे के बुतखाने में..!!"

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Thursday, December 20, 2012

'असंवेदनशील..'






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"कितने असंवेदनशील सम्बन्ध हो रहे..
अपने घर में अपने लूट रहे..!!"

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Tuesday, December 18, 2012

'सबब..'







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"कच्चा-पक्का सवाल मेरा..
पक्का-सा जवाब तेरा..

कहाँ हासिल सबब अब कोई..!!!"


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Wednesday, December 12, 2012

'अशआर..'




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"हीरा..पन्ना..माणक..
अज़ीज़ बेशुमार..

ना भूला सका..
ना सुलगे अशआर..!!!"

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Tuesday, December 11, 2012

'मन-आँगन..'





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"सजीव चित्रण असंभव..
मूरत अमूर्त मन-आँगन..!!"

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Saturday, November 24, 2012

'ह्रदय-कोशिका..'





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"ह्रदय-कोशिका नसों से जीवन संचारित करती रहीं, लक्ष्य को भेदती रहीं, उपजाऊ धरती पर खिलखिलाती रहीं..
आत्म-शोध अपूर्ण रहा..

..........कुछ किस्से गंतव्य तक नहीं पहुँचते..!!"


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Wednesday, November 21, 2012

'आफ़ताब..'




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"झूठ-सच ख़रा सौदा..
आफ़ताब मेरा..
लुट गया..!!"

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Monday, November 19, 2012

'गुनेहगार..'




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"अपने माज़ी का गुनेहगार हूँ..
अपने ही खज़ाने का सारिक हूँ मैं..

गिर नज़रों से..ना जी सकूँगा कभी..!!"

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Tuesday, November 13, 2012

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ..!!






सुख, समृद्धि, सद्बुद्धि, सौभाग्य से परिपूर्ण हो हर दिवस..प्राणी-मात्र के लिए, हर जीव के लिए शुभकारी एवं मंगलकारी हो मंगल त्यौहार.. ढेरों शुभकामनाएँ..!!!

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"अंतर्मन की ज्योति जले..
करो प्रभुवर उपकार..
जीवन का उद्देश्य..
रक्षा प्राणी-मात्र..!!"

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Friday, November 9, 2012

'मन की बगिया..'




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"इक तेरा चित्र खिला जबसे..
मन की बगिया में..
उभर आये लाल, गुलाबी, पीले, नारंगी पुष्प कितने..
बिखेरती है सूरज की आभा..
जब अपना स्वर्णिम..
लरजती है..
ओस की बूँद तभी..

चलो,
बहुत हुआ..
यूँ ना नश्वर को और नश्वर बनाओ..
समीप आ..
पुष्प अर्पण कर
प्रभुवर शीश नवाओ..!!"

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Thursday, November 8, 2012

'अस्तित्व..'





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"आप क्यूँ उकेर देते हैं ऐसा सत्य, जिसका कोई विकल्प हो ही नहीं सकता..??? क्यूँ लिखते हैं आप ऐसा जिससे ना जाने कितनों के घाँव हरे हो जाते हैं..?? क्यूँ लेते हैं आप परीक्षा उन प्रश्नों से, जिनके उत्तर कहीं भी नहीं मिल सकते कभी..?? क्यूँ आप उस धरती को झकझोरते हैं जिससे अस्तित्व स्वयं ही अपना अस्तित्व भूल जाता है..??

मत करिए ऐसा..बहुत एकाकी जीवन है मेरा, रहने दीजिये ना इसे वैसे ही..!!!"

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Tuesday, November 6, 2012

'नशीली कोशिकाएँ..'





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आज सुबह, नहीं पिछली दो रातों, से तेरा साथ जैसे और करीब लाने को बेकरार कर रहा है.. सिमटना चाहती थी तेरी बाँहों में, पर वक़्त ने बंदिश लगा दी.. मजबूरी का लिहाफ़, दुनिया की रिवायतें, जिस्म की थकावट..आखिर कब तक रोक सकेगी वस्ल-ए-रात.. तेरी इक छुअन का एहसास कब से धधक रहा है, तेरे होंठों की नमी कब से तलाश रही हैं गुलाबी बदन की नशीली कोशिकाएँ..

अभी बाईस दिन बाकी हैं..और बाकी है 'एक रात' जब मैं खुद को तेरे हवाले कर दूँगी..तुम लिखोगे ना मेरे लिए वो 'कविता' जिसका बरसों से इंतज़ार कर रही हूँ.. बहुत करीब आ जाना भूला सारी दुनिया, मेरे राज़दां..

आज सुबह से उदासी के बादल तेरे मेरे रिश्ते की छत पर डेरा जमाये बैठे हैं, कहाँ गया वो आवाज़ का जादू.. तरस गयी हूँ वो सब सुनने को...आओ ना मेरी जां...मुझे थाम लेने को, करीब आ बाँहों में कसने को..

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'नक़ाब..'






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"क्या पता..क्या जाने तू..
तेरी रहगुज़र में पलते सपने कई..
आना किसी रोज़ फुर्सत में..
दिखलाऊँगा दिल के दाग़ कई..
चाहत में डूबे गुलज़ार तारे..
नक़ाब ओढ़े महबूब कई..!!"

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'फ़रमान..'










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"मौत का फ़रमान भी अजीब-सा था इस दफ़ा.. पिछली कई मौतें यूँ भी जी आई थी, ना बाँध सकी थी कोई रिश्ता तेरी ऊँगली के पोरों से, ना तोड़ सकी थी रूह का लिहाफ़ तेरी बेरुखी से..!! क्यूँ बारहां भूल जाती हैं रेत की चादरें वजूद अपना, जबकि उनसे ही नखलिस्तान का क़द ज़िंदा रह पता है..!!


क्यूँ समझते नहीं महबूब..उनसे ही नहीं जुस्तजू कायम..
और भी हैं दर-ए-क़फ़स..मरती मिटती आरज़ू हर नफ्ज़..!!"

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'कोना..'




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"तुम समझते हो बेकार हूँ मैं, किसी लायक नहीं.. सच ही कहती हो तुम.. कोई गुल की खुशबू सहेज ना सका अब तलक..कोई दामन रंगीं ना कर सका..

तुम क्या जानो..तुम बिन गुज़री उन वीरान रातों में कितनी मर्तबा बाँटा था रूह का हर कोना-एक कोना तुम्हारी यादों का, दूजा बेशुमार चाहत के कैनवास का, तीजा मदहोश करती तुम्हारी आवाज़ से लबरेज़ उन हर्फों का, चौथा तुम्हारी गिरफ्त में क़ैद *वाफ़िर साँसों की बेताब **तिजारत का..

तुम क्या जानो..मेरी वफ़ा के माने..
संग की सिलवटें..बहलातीं नासूर पुराने..!!"


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*वाफ़िर = ढ़ेर/abundant
**तिजारत = traffic

Sunday, November 4, 2012

'बही-खाते ..'






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"जीते रहेंगे आप सदा..
गुज़ारिश है ऊपर वाले से..
मरना-वरना खेल हमारा..
तुमको क्या बही-खाते से..!!"

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Sunday, October 28, 2012

'ह्रदय-व्यापार..'





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"देखो, थम गयी सृष्टि..
रुक गया ह्रदय-व्यापार..
अद्भुत अतुल्य सौन्दर्य तुम्हारा..
करता विभोर तार-तार..!!"

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Friday, October 26, 2012

'छाप..'


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"कोई जो मिले हमसफ़र..
सफ़र तक साथ दे..
ना थामे हाथ मेरे..
बस रूह को छाप ले..!!"

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Thursday, October 25, 2012

'चाहत के अशआर..'


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"जानती थी..
नहीं आओगे..
ले जाना उस चौराहे पर खड़े..
गुलमोहर के तने पर लिखे..
चाहत के अशआर..
और..
दीवानगी के निशाँ..!!"


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Saturday, October 13, 2012

'प्रेम..'



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"नज़र भर का फेर..
तुम्हारा निश्छल प्रेम..

जीवन भर का स्तम्भ..
तुम्हारा पवित्र प्रेम..

नदिया भर का खनिज..
तुम्हारा कलकल प्रेम..!!"


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Sunday, October 7, 2012

'कविता..'





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"मेरी कविता की..
हर पंक्ति..
रची-बसी तुमसे..

सुबह की पहली लाली लिये..
चहकी तुमसे..

दोपहर की अल्हड़ वाणी लिये..
दहकी तुमसे..

शाम की मदमस्त रवानी लिये..
बहकी तुमसे..

रात की भीगी चांदनी लिये..
महकी तुमसे..!!"

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Saturday, October 6, 2012

'लम्हे..'


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"सफ़र में मिले कुछ अजनबी..
चंद लम्हे देकर..
सौदा-ए-रूह किया..!!!"


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Thursday, October 4, 2012

'बेचैनी की चादर..'




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"बेचैनी की चादर ओढ़ी कल रात..
याद तेरी रची-बसी सूत-सी कोमल..!!"


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'बेजान रातें..'





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"ये चाहत से तरबतर यादें..
बन जुगनू..
झिलमिलाती रहीं..
मेरी बेजान रातें..!!"

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Sunday, September 30, 2012

'किश्तें..'




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"जिस्म के रिश्ते..
नासूर दे जाते हैं..
अक्सर..

बेवज़ह मरहम..
लगा जाते हैं..
अक्सर..

ज़रा..
गम-ए-जुदाई..
उधार दे जाना..

किश्तें चुकानी हैं..!"

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Thursday, September 27, 2012

'फरेबी व्यापार..'




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"क्या ह्रदय बिलखता नहीं..
स्वयं पर अत्याचार से..

क्या लहू खौलता नहीं..
क्षण-क्षण के संहार से..

क्या स्मृति क्षीण होती नहीं..
नृशंस व्यवहार से..

क्या अंतरात्मा चोटिल होती नहीं..
जघन्य प्रचार से..

कहो, कब मिलेगा विराम..
फरेबी व्यापार से..!!"

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Wednesday, September 26, 2012

'कुकर की सीटी..'





कृपया बात करते समय अपने kitchen में जाकर पहले बर्नर को ऑफ कर दें..आप सुन रहे हैं ना..???

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"उफ़..
कितनी बेवफ़ा..
ये कुकर की सीटी..

कितने गिरते-संभलते..
जी-भर कोशिश करते..
लफ्ज़..
आते हैं ज़ुबां..
जब कभी..

धमम...म..म..
बज जाती है..
सीटी-ए-हिज्र .!!

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'टोकरी रंगों-वाली..'


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"इन खाली चौकौरों में भर दो अपनी लाली..
विरक्त लगे जब कभी मेरी जीवन-डाली..
निकाल फेंकना मुझपर टोकरी रंगों-वाली..
सहज स्वीकारुंगी स्नेही-विशिष्टता निराली..!!!"

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Monday, September 24, 2012

'तुम्हारा प्यार..'




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"तुम्हारा प्यार..
एकदम जिद्दी..
बिलकुल मुसलाधार बारिश जैसा..
कितना ही बचने की कोशिश करो..
भिगो जाता है..
रूह की सतह तक..!!"

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'वजूद-ए-लहर..'



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"काश..
बँध सकते..
रेत पे साहिल के घरोंदे..

पड़ता है टूटना..
हर पल..

फ़क़त..
बचाने..
वजूद-ए-लहर..!!"

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Saturday, September 22, 2012

'नसीब..'

...

"यूँ लगता है..
खो गयी..
एक बार फिर..

टूट गयी..
बन सितारा..
एक बार फिर..

दुआ ये ही अता हुई हो..
शायद..
नसीब मेरे..!!"

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Friday, September 21, 2012

'आकाश ..'

...


"विषम परिस्थिति क्या गिरायेगी मनोबल मेरा..
रख दूँ कदम हौसला-भर, वो ही आकाश मेरा..!!"


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Wednesday, September 19, 2012

'अवशेष..'





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"शब्द सूक्ष्म-भाव क्या जानें..
कोमल कोशिकाओं की मानें..
ह्रदय-पट्ट खोल ठाने..
प्रवेश तुम्हारा पाने..
क्षेत्रफल गोलार्ध छाने..
चले रंगमंच लाने..
पहुँचे भाव जगाने..
जीवन-प्रवेश रमाने..
आओ, अवशेष थमाने..!!"

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'दिल..'




...


"मुड़ जाते हैं..
रास्ते सारे..
खुद-ब-खुद..
तेरी ओर..
गर्द हो भारी..
या तूफ़ानी चिंगारी..
लकीरों पे काबीज़..
राज़दां, मैं दिल हारी..!!"

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Tuesday, September 18, 2012

'बारिश..'




...

"भीग जाने दो..
बारिश की बूंदों को..
ज़रा..
जन्मों से बोझिल साँसें..
भरती नहीं दम ज़रा..!!"

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'तनहा..'




...

"ग़मज़दा..
गुमशुदा..

तनहा..!!!"

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Thursday, September 13, 2012

'तुम..'


...


"लकीरें - कुछ गहरी, कुछ हल्की..
गिरफ्त - कुछ मज़बूत, कुछ कमज़ोर..
जज़्बात - कुछ उत्तेजित, कुछ भावुक..

तुम - कुछ साँसें, कुछ मैं..

मैं - कुछ तुम, कुछ तुम, कुछ तुम, सब कुछ तुम....!!!"

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Wednesday, September 12, 2012

'ए-पथिक..'




...


"सूर्य-किरण से बहता..
अनंत प्रताप..
झर-झर झरो..
बलशाली अनुताप..


उठो..ए-पथिक..
त्यागो विकार..
पग-पग परिश्रम..
जीवन-आधार..!!

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Monday, September 3, 2012

'दरमियां..'




...

"रेज़ा-रेज़ा बहता दर्द..
नफ्ज़-नफ्ज़ दहकता अश्क..

काश..फ़ासला गहराता नहीं..
वफ़ा, रज़ा, ख़ता, सज़ा दरमियां..!!"

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Friday, August 31, 2012

'चुपके-चुपके..'






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"हर लम्हा आँख नम कर जाते हो..
हर ख्वाब सज़ा कम कर जाते हो..१

पशेमां मौसम हुए जाते हैं..अब..
क्यूँ..तन्हाई में दम भर जाते हो..२

नूर से रंगी तस्वीर वो पुरानी..
फ़क़त..सांसों में जम* भर जाते हो..३

दर्द मचलता है चुपके-चुपके..
खामोशी से मुझमें रम जाते हो..४..

रिवायत-ए-मोहब्बत-ए-आलम..
दो गैरों को हम-दम कर जाते हो..५..!"


* जम = जाम..

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'तमन्ना-ए-फिरदौस..'




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"ज़मीर जो बिछड़ा रूह से..हुआ मलाल है..
ज़िन्दगी की कशमकश पर..उठे सवाल है..१

शिकार हुए नफरत में..गुलिस्तान कितने..
ख्वाबों की ज़मीं पर छाया..फिर अकाल है..२

सैलाब था जो दरमियान..रंगों से भरा..
सिमट गया..शायद..वहशत का कमाल है..३

कश्तियों में डूबा..बेजार आसमान-ए-चिराग..
तमन्ना-ए-फिरदौस..वाह..क्या ख्याल है..४..!"

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'कुछ ख्वाब..'





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"हर पल..सपना-सा था..
रूह में बसा..अपना-सा था..

कारवाँ इक..चलता रहा..
एहसास इक..पलता रहा..

रंज-ओ-गम..जमता रहा..
एह-दे-वफ़ा..रमता रहा..

अहमियत फिसलती रही..
बेबसी मचलती रही..

अँधेरा चमकता रहा..
रकीब दमकता रहा..

सिलवटें उलझी रहीं..
रिवायतें झुलसी रहीं..

लम्हे जलते रहे..
पैमाने मलते रहे..


कुछ ख्वाब..

गुड-से तीखे..
नासूर बंजारे-से..!"

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'खामोश कदम..'





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"अरसा हुआ..शब नहीं देखी..
साँसों ने हकीकत नहीं देखी..१

बेजुबान ही रहे..फरेबी अरमां..
वाईज ने मल्कियत नहीं देखी..२

अनजान मंजिल..खामोश कदम..
खंज़र ने शोखियत नहीं देखी..३

माहताब-सा हुनर कहाँ रकीब..
मुद्दतों से नसीहत नहीं देखी..४..!"

...