Wednesday, September 29, 2010

'ज़िन्दगी..'




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"खुद को तलाशती..
रूह को खंगालती..
फ़लसफ़ा-ए-ज़िन्दगी..!!"

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'आशिकी..'


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"शिकवा कर सकें..
मुनासिब नहीं..
आशिकी का पहला फतवा..
गवारा नहीं..!!"

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Monday, September 27, 2010

'खलिश..'



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"महबूब बाहों में उलझते नहीं..
अश्क आँखों में रुकते नहीं..

अजीब खलिश है..दिल अब धड़कते नहीं..!!"

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'तेरे बाद..'


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"कश्ती बेवफा-सी लगती है..
इस मझधार..
दोस्ती बेमानी-सी लगती है..
तेरे बाद..!!"

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'अजनबी इश्तिहार..'


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"अजनबी इश्तिहार मशहूर हुए..
गिरह में लिपटे अब दूर हुए..!!"

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Saturday, September 25, 2010

'विषमतायें..'


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"जीवन की राहें जटिल रहेंगी..
तराश सको ..
ह्रदय की विषमतायें हटाना..!!"


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'सर-ओ-सामान..'



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"दामन में भीगी..
खुशबू रूह की..
अलसायी चाहत..
मदमस्त वफ़ाएँ..
मशहूर इबादत..
मासूम निगाहें..

और..

नम काजल..

सर-ओ-सामान..
*कामिल हुआ माज़ी..
कुरेदो आशियाना-ए-नफरत..!!"

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*कामिल = पूरा..

Friday, September 24, 2010

'समागम..'


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"अंतर्मन की सरस्वती..
बहती है जमुना बन..
गंगा हो जाती है..
'प्रियंकाभिलाषी'..!"

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'मासूमियत की 'लोरी'..'


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"खिलखिलाती आँखें..
चहकता बचपन..
भोली शैतानियाँ..
टपकता अल्हड़पन..

महँगी हो गयीं है..
अब..
मासूमियत की 'लोरी'..!!"

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Thursday, September 23, 2010

'गुबार..'



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"रंजिश है..
गुबार दिखा..

यूँ बंजर भी..
तूफाँ उठाता है..!!"

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'थक गया हूँ..'



"टुकड़ों में ढलती ज़िन्दगी..
ज़मीन-ए-रूह बंज़र..

शिकारी बिसात..
टूटे जज़्बात..

रेज़ा-रेज़ा ना-मुरादी..
रफ्ता-रफ्ता बेबसी..

थक गया हूँ..
फरेबी वीरानी से..!"

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Sunday, September 19, 2010

''कीमत..'



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"अक्स मिलते हैं..
बाज़ार में अब..
रिश्तों के काफिले..
सुलगते हैं तब..
कीमत चुकानी मुश्किल..
अपने ग़ैर बनते हैं ज़ब..!!"

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Friday, September 17, 2010

'दिल की तारों पे..'


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"जंग कदीम मिटा दूँ..लगें है दिल की तारों पे जो..
चर्चा मशहूर करा दूँ..जमे हैं साँसों के पारों पे जो..१..

दरिया निभाते हैं..दस्तूर-ए-महफ़िल-ए-हुस्न..
लूट लेना इंसानियत..दफ्न हैं कूचों के चारों पे जो..२..

मुसाफिर हूँ..शायर हूँ..यकीं मानो..रूह-ए-सौदागर हूँ..
कुरेद लो मोती..रज़े हैं समंदर की दीवारों पे जो..३..

फरिश्तें मिलेंगे..लहराती बस्ती के साये..देख लेना..
शुक्रिया वाईज़..रौशन हैं दिलदार की *हारों पे जो..४..!!"


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*हारों = शिकस्त..

Wednesday, September 15, 2010

'आँखें..'



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"काज़ल लुभाती आँखें..
अक्स सुनाती आँखें..

बारहां..रूह उधेड़तीं आँखें..!!"

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Tuesday, September 14, 2010

'सत्ता की पगडंडियों से.. ढाणियों का सफ़र..'



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"क्या बदल सकोगे..
विश्वास की चादर का दाग..
क्या मिटा सकोगे..
महँगाई का चिराग..
क्या पहुँचा सकोगे..
संकरीं गलियों में *राग..
क्या लुभा सकोगे..
#बेज़ुबां पत्तियों का दिमाग..

आसां नहीं है..
यूँ सत्ता की पगडंडियों से..
ढाणियों का सफ़र..!!"


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*राग..= आवाज़..
#देश के अनगिनत प्रतिभाशाली विद्यार्थी..जो राजनीतिज्ञों की विलासता के आगे विवश हैं..

'आवाज़..'


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"क्या आवाज़ दूँ..
उन ज़ख्मों को..
अपने नहीं जो गैरों पर लुटा करते हैं..!!"

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Thursday, September 2, 2010

'तन्हा-तन्हा..'


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"दूँगा आवाज़ सहम जाओगे..
खोलूँगा गिरहें बदल जाओगे..

बारिश..बूँदें..बादल..तन्हा-तन्हा..!!"

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'गरम यादें..'


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"गिरती संभलती..
कभी इस कोने..
तो कभी उस डाल..

धमा-चौकड़ी मचाती..
आँगन रंग बिखेरती..
शहनाई-सी मिठास..
बांसुरी-सी ताजगी..
घोलती सुरीली वाणी..

आज भी..
करीने से रखी है..
संदूक में..

मलमल दुपट्टे ओढ़े हुए..
उन ठंडी रातों की..
गरम यादें..!!"

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Wednesday, September 1, 2010

'शब बना दे..'

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"जिस्म सुलगा दे..
रूह छलका दे..
आज फिर शब बना दे..


ख्वाब-ए-हसरत महका दे..
हयात-ए-शरीक दमका दे..
आज फिर शब बना दे..

जुल्फों के साये लहरा दे..
फासले दरमियाँ मिटा दे..
आज फिर शब बना दे..

सिलवटें गुलों से सजा दे..
ख़त निगाहों से सुना दे..
आज फिर शब बना दे..

रंगीन आँसू पिला दे..
मुझे तुझमें मिला दे..

हाँ..
आज फिर शब बना दे..

काजल तड़पा दे..
आगोश उलझा दे..
आज फिर शब बना दे..

मुद्दत से है ख्वाइश..
आज फिर शब बना दे..!"


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'तराजू ..'


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"मौत सज़ा बैठा था..
आँगन में जिसकी..
बिकता मिला..
हर तराजू में वो..
क्यूँ भरता नहीं..
लोभ का घड़ा..!
और..
व्यसनों का कुंड..!!"

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'लहू के कतरे..'


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"चंद बिखरे लहू के कतरे..
उठाने की कोशिश..
बेमौत जला गयी..
शफ़क़त की चादर..!!"

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