Saturday, January 30, 2010

'हम दोनों के बीच..'


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"यादों का पुलिंदा..
मिलता नहीं आज-कल..
बैठा है रूठ कर..
नीम की डाल पर..
जब भी पुकारो..
कहता है..
कल आऊँगा..

माज़ी मिला था उस रोज़..
चौराहे पर..
नज़रें टकरायीं..
सिरहन उठी..
सुलगी साँसें..
थरथराये जिस्म..
भीगी आहें..

रुक गयी हो क़ायनात..
दफातन..

फिज़ा रंगीन हो गयी..
जैसे..
उम्मीदें परिंदे बन गयीं..
जैसे..
सरहदें मिल रहीं हों..
जैसे..
तन्हाईयाँ फफक रहीं हों..
जैसे..

तहखाने में दबे जज़्बात..
रौशन हो गए हैं ना..

चलो..
अब मान भी जाओ..
बस जाओ ना..
रूह में..
फिर से..
कोई नहीं आयेगा..
हम दोनों के बीच..!"

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Friday, January 29, 2010

'बिखरना.. चाहता हूँ..'




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"अफ़साने इन दिनों..
मुस्कुराते हैं..

ख्वाब इन दिनों..
चहचाहते हैं..

साहिल इन दिनों..
फुसफुसाते हैं..

परिंदें इन दिनों..
लह्काते हैं..

शायर इन दिनों..
शरमाते हैं..

मौसम इन दिनों..
बुदबुदाते हैं..

रकीब इन दिनों..
कतराते हैं..

नक़ाब इन दिनों..
उलझाते हैं..

मयखाने इन दिनों..
समझाते हैं..

ज़ख्म इन दिनों..
गुदगुदाते हैं..

वाईज़ इन दिनों..
छलकाते हैं..

नज़ारे इन दिनों..
टकराते हैं..

मुद्दत से..
मुरीद हूँ..

फ़क़त..
तुझमें..
बिखरना..
चाहता हूँ..!"

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'यकीं हैं..थाम लोगे मुझे..'




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"दर्द की गठरी..
आँसू का रेला..
नाकामयाबी की कहानी..
बेबसी का मेला..

आँखों में जब देखते हो..
बाँध के इक मशाल..
सब सिमट जाता है..
इन अंधेरों का तूफाँ..

अनगिनत जज़्बात..

लौ लाते हो शब की कलाई से..
उठा लेते हो..फिर से..
मुझे अरमानों की लड़ाई से..

दफातन..आये थे जब..
ना समझ पाया था..
इस दोस्ती का सबब..

ऐसे ही रहना..
बनकर मेरे हम-सफ़र..

रंग कई और निकलेंगे..
खामोशियों से..

यकीं हैं..मेरे दोस्त..
थाम लोगे मुझे..
इन बेमौसम बारिशों में..!"

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Thursday, January 28, 2010

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"चिंगारियां सीने में धधकती हैं ऐसे..
मंज़र साहिल पर सिसकता हो जैसे..
ना समझना मेरी खामोशी को बंज़र..
लहू खौलता है खंज़र की हर आहट पर जैसे..!"

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'हर रोज़..'


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"तेरी इक वफ़ा चाहता हूँ..हर रोज़..
तुझे फ़क़त भूलना चाहता हूँ..हर रोज़..

तेरी साँसे महकाना चाहता हूँ..हर रोज़..
तुझे अपना बनाना चाहता हूँ..हर रोज़..

तेरी महफिल सजाना चाहता हूँ..हर रोज़..
तुझे ख़त पढाना चाहता हूँ..हर रोज़..


मुद्दत से..
तेरी रूह में बस जाना चाहता हूँ..हर रोज़..!"

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'दिल लगा रखा है..'


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"फ़क़त..

इक राज़..
सँभाले रखा है..
इक साज़..
सज़ा रखा है..
इक तार..
सँवार रखा है..
इक गुल..
छुपा रखा है..

हाँ..
सच है..

तुमसे..
दिल लगा रखा है..!"

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Wednesday, January 27, 2010

'तुम बिन..'



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"रूह को बांटा था..जिस दिन..
सुलगी थी ओस भी..उस दिन..

फिजायों में महकी-सी खुशबू..
कैसे चलतीं इक कदम..तुम बिन..

चाँदनी में भीगी..साँसों में घुली...
फ़क़त..बेमानी थी..तुम बिन..

गुरूर था..फलक को तारों पर..
कैसे सिमटीं थीं रातें..तुम बिन..

कब तक छुपाऊं..वो काजल..
जलता नहीं..जो..तुम बिन..

कैसे मिटाऊं..कलाई का निशाँ..
काटा था..जुदा हो..उस दिन..!"

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Tuesday, January 26, 2010

'सस्नेह आभार....'



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"ह्रदय में प्रज्जवलित..
रौशनी..
अनायास ही..
भ्रम दे गयी..

करते थे जीवन-यापन..
सरल यात्रा कर गयी..

साँझ के पड़ाव पर..
आस नयी दे गयी..

प्रिय मित्र..
तुम्हारा संबल..
अंतत..

सींच लाया..
पौध को..
तरुवर समान..
स्नेह-रस..

अभिभूत हूँ..
कृतज्ञ हूँ..

समानांतर बिठा..
माधुर्य पाठ पढ़ाया..

सस्नेह आभार..
उदारता सदैव रहेगी..
सुशोभित..!!"

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'हम-दम..'


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"हर लम्हा आँख नम कर जाते हो..
हर ख्वाब सज़ा कम कर जाते हो..१


पशेमां मौसम हुए जाते हैं..अब..
क्यूँ..तन्हाई में दम भर जाते हो..२


नूर से रंगी तस्वीर वो पुरानी..
फ़क़त..सांसों में जम* भर जाते हो..३


दर्द मचलता है चुपके-चुपके..
खामोशी से मुझमें रम जाते हो..४..


रिवायत-ए-मोहब्बत-ए-आलम..
दो गैरों को हम-दम कर जाते हो..५..!"



* जम = जाम..


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'कितनी मासूमियत बचा रखी है..'


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"कितनी बेबसी छुपा रखी है..
कितनी मासूमियत बचा रखी है..


हर सहर..


इक नकाब पहने..
रूह को दफनाये..


महफिल तक जाने को..
बारहां..निशाँ छुपाये..


बेरब्त ख्यालों की खलिश ने..
बिसात-ए-नजाकत उखड़वाये..


इक दर्द का मंज़र..

मिटटी के जिस्म सजाये..


बेवक्त दास्तान-ए-अब्र..
इक बूँद में समंदर समाये..


उफ़..रंजिश-ए-ज़िन्दगी..
कारवां कितने कतराये..


आशियाँ प्यासा ता-उम्र..
नश्तर मजरूह बिकवाये..


..


कोने में रखी अलमारी..
रेंगती हयात जैसी तनहा..


..


सच..


कितनी बेबसी छुपा रखी है..
कितनी मासूमियत बचा रखी है..!"


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Friday, January 22, 2010

'घुटन साँसों की दबाऊँ कैसे..'


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"ज़ार-ज़ार ख्वाबों को सजाऊँ कैसे..
अश्कों की दहलीज़ को छुपाऊँ कैसे..१


वहशत के शोर में उलझी फिजायें..
घुटन मेरी साँसों की दबाऊँ कैसे..२


अजब है..रिवायत-ए-महफिल..
शिकवा खुदा को दिखाऊं कैसे..३


बारहां..झुलसता रहा लम्हों में..
साए जुल्फ-ए-रंगत बहाऊँ कैसे..४


इक खलिश-सी ज़िंदा है अब-तलक..
रंगत-ए-नासूर फिर..जमाऊँ कैसे..५


नजाकत-ए-दौर..ख़ाक हुआ इस मौसम..
इबादत-ए-शिकन आज सुखाऊँ कैसे..६..!"


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Wednesday, January 20, 2010

'बचपन की मासूमियत..'


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"वो सूना आंगन..
वो ठूंठ आम..
वो पगडंडी ..
वो बे-जार तन्हाई..

अब तक पड़ी है..

सांसों से चिपकी..
आंखों से लिपटी..
यादों में सिमटी..

बचपन की मासूमियत..!"

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Tuesday, January 19, 2010

'दस साल का वजूद..'




"कुछ सिमटी यादें..
कुछ बेनाम ख़त..

कुछ अनकहीं बातें..
कुछ बेनकाब ग़म..

गुलमोहर की छाँव..
उजाले की दाँव..

वो वक़्त को..
मुट्ठी में थामना..

घंटों तक ताकना..
पलकें ना झपकाना..

बस यूँ ही..
फूलों के तोहफे..

नजरों में तलाशना..
मासूमियत का खजाना..

शाम-ओ-सेहर तस्वीर..
बस उनकी निहारना..


सिरहाने बैठ समझना..
तूफ़ान का मंज़र..

इक खामोश इशारा..
आंसुओं का नज़ारा..


कैसे समेटूँ मेरा..
दस साल का वजूद..!"

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Monday, January 18, 2010

'इनायत-ए-मांजी..'


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"कलम खुद-ब-खुद..
तस्वीर लहकाती रही..१

साँसे खुद-ब-खुद..
आँगन महकाती रही..२

मदहोशी खुद-ब-खुद..
कसक दहकाती रही..३

मियाद खुद-ब-खुद..
नूर चहकाती रही..४


इश्क-ए-दीदार..
इनायत-ए-मांजी..!"

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' इक सपना..'


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"मुझ में बसा था जो..
हर पल सज़ा था जो..

महफिलों की जान था जो..
दिल का अरमां था जो..

नाजों से पला था जो..
रूह में रमा था जो..

महताब से धुला था जो..
गुलशन से खुला था जो..

हर तरफ अश्कों का मंज़र..
कुछ ऐसा खंज़र था जो..

मेरा इक सपना..पला था वो..
फ़क़त..हर पल जला था वो..!"

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Friday, January 15, 2010

'गुड़िया रानी..'





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"सिमटी-सी..सहमी-सी..
मेरी गुड़िया रानी..

जब-जब सहलाऊं..
आ जाए रवानी..

खिलखिलाती हुई भरे..
जीवन में कहानी..

मेरी प्यारी बिटिया..
हुई अब सयानी..

नयी राहें बुलाएं..
खोजो दिशायें आसमानी..

बढ़ते रहो तुम..
बनेगी इक निशानी..!"

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'रूमानी रिश्ते..'



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"खुशबू साँसों में..
समाये जैसे..

परिंदे पिंजरे उड़ा..
मुस्काये जैसे..

ख़त संदूक में..
गुनगुनाये जैसे..

बेल शाख पे
अंगड़ाये जैसे..

मुसाफिर राहों को..
थकाये जैसे..

मेहँदी कलाईयों को..
सजाये जैसे..

चिराग हवाओं को..
जमाये जैसे..

चाँदनी सितारों से..
शरमाये जैसे..

..

रूमानी रिश्ते..
पाक़ ही होते हैं..!"

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'बिखरे सपने..'


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"सपने अपने पराये हुए जाते हैं..
दर-ओ-दीवार सराए हुए जाते हैं..

गुल-ए-बारूद..अक्स-ए-इंसान मिटा आया..!"

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Wednesday, January 13, 2010

'हार गयी मैं..'


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"आपको मैने अपना 'बच्चा' ही माना था..हर पल..
आपके सपनों को सच करने के लिए साथ देना चाहा..
थोड़ी मदद भी करी..

शायद..हार गयी मैं..


जितना दुलार..स्नेह..
मन के किसी कोने में दबा हुआ था..
स्वयं ही फूट एक धारा फूट पड़ी..

आपने कभी कहा क्यूँ नहीं..
यह दुलार..प्यार..अपनापन..स्नेह..सम्मान..पर्याप्त नहीं था..

मैं प्रयत्न करती..
सुधारने का हर संभव प्रयास करती..

इन आँखों से बहती हुई अश्रु-धारा..
न जाने किधर जा रही है..

शायद..उस राह पर जहाँ स्वयं से..
कुछ अनकहे प्रश्न रखे हैं..

हर किताब में समाए हुए..
उन अनगिनत शब्दों का सार यही है..


आज..हार गयी मैं..


उस माधुर्य को एकत्र कर..
मोतियों जैसा उज्ज्वल..
निर्मल..
ना रख पाई..

उन स्मृतियों को अंतर्मन में..
समावेष्ट ना कर पाई..


आज..हार गयी मैं.. ..


उन कमल के फूलों की पंखुड़ियों के समान..
आपके आँगन को सुशोभित नहीं कर पाई..

उस गगन में व्याप्त उपलब्धियों को..
आपके शौर्य अनुसार संजों नहीं पाई..


आज..हार गयी मैं..


उस चंचल..मुस्कान को..
काजल जैसा तेज नहीं दे पाई..

उस प्रचंड स्फूर्ति को..
इक दिशा भी ना दे पाई..


सच ही तो है..
आज..हार गयी मैं..


उस नदी में सिमटे हुए तत्वों को..
अनुचित स्थान ना दे पायी..

उस अदभुत बेला में नहाये हुए..
रंगों को अभिमंत्रित नहीं कर पाई ..


आज..हार गयी मैं..


उस जीवन की प्रक्रिया को..
सुन्दरता नहीं दे पायी..

उन पक्षियों की सुगबुहाटों को..
सरगम का स्वर ना दे पाई..


आज..हार गयी मैं..


उन पर्वतों की विशाल श्रृंखला को..
नमन भी ना कर पायी..

उस आम के वृक्ष की छाँव में..
खिलखिलाती जाड़े की धूप को..
अपना ना कर पायी..

आज..हार गयी मैं..



जड़-हीन हो गयी हूँ..मैं..
कोई चेतना नहीं रही..

स्वयं से घृणा भी हुई..
निर्माण ना हो सका..एक भविष्य का..
जहाँ कोई शंका..कुरीतियाँ ना हों..



सच..

आज..

हार ही गयी मैं.. !"


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Saturday, January 9, 2010

रौशनी..


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"सिमट-लिपट..
रंगों का मेला..

फैला हर ओर..
मस्तियों का रेला..

बजाओ शहनाई आज..
आई नयी बेला..

मलो रौशनी सब..
न रहे कोई अकेला..!"

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Friday, January 8, 2010

नमक के डले..




...


"नमक के डले..
सँभाल रखे हैं..
पुराने बक्से में..

तुम्हारी याद के साथ..
बरबस आ गए थे..
मेरे पास..!"

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Thursday, January 7, 2010

कीमत..


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"कीमत साँसों से..
चुक जाती..

ऐसे भी..
तन्हा..
क्या जीते हम..!"

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यादें..


...

"दास्तान-ए-रिवायत..
जब सुनाएगा..
वक़्त का दरिया..
सिमट जाएगा..

कदीम यादें छुपा रखना..
ज़रा..
दफ्न नासूर..
फिर रंग लाएगा..!"

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Tuesday, January 5, 2010

किस्तें..


...

"जिस्म के रिश्ते..
नासूर दे जाते हैं..
अक्सर..

बेवज़ह मरहम..
लगा जाते हैं..
अक्सर..

ज़रा..
गम-ए-जुदाई..
उधार दे जाना..

किस्तें चुकानी हैं..!"

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Monday, January 4, 2010

चल-चला..


...


"थाम हाथ..
पग उठा..

ना थक..
बन हवा..

कर जग..
जग-मग..

श्रम लगा..
फल उगा..!"

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Sunday, January 3, 2010

राम ना कर..


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"तमन्नाओं का नाम ना कर..
सरे-राह..ज़मीर नीलाम ना कर..१

ज़बां से हुआ ना इल्म ज़रा..
तस्वीर महफ़िल में जाम ना कर..२

खुशबू गुलाबों से..क़यामत वाजिब..
गुलबदन..पर्दा मेरा दाम ना कर..३

खूं से लबालब खंज़र..रेत हुआ जिस्म..
बस..हर निशान-ए-क़त्ल राम ना कर..४..!"

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Saturday, January 2, 2010

घुटन..


...

"ज़ार-ज़ार ख्वाबों को सजाऊँ कैसे..
अश्कों की दहलीज़ को छुपाऊँ कैसे..१

वहशत के शोर में उलझी फिजायें..
घुटन मेरी साँसों की दबाऊँ कैसे..२

अजब है..रिवायत-ए-महफिल..
शिकवा खुदा को दिखाऊं कैसे..३

बारहां..झुलसता रहा लम्हों में..
साए जुल्फ-ए-रंगत बहाऊँ कैसे..४

इक खलिश-सी ज़िंदा है अब-तलक..
रंगत-ए-नासूर फिर..जमाऊँ कैसे..५

नजाकत-ए-दौर..ख़ाक हुआ इस मौसम..
इबादत-ए-शिकन आज सुखाऊँ कैसे..६..!"

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